Tuesday, 24 February 2015

गोमती प्रदूषण पर उ. प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का जवाब
यह कैसा प्रदूषण नियंत्रक ?

किसी भी राज्य में प्रदूषण नियंत्रित करने की सबसे अधिक अधिकारिक जवाबदेही, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की होती है। किंतु यदि उसे इसके लिए धन ही न मिले अथवा उसे प्रदूषण नियंत्रण हेतु राज्य के संबंधित विभाग द्वारा जारी आदेशों/निर्देशों की जानकारी ही न हो, तो इस स्थिति को आप किस धिक्कार से नवाजेंगे ? किसे दोषी ठहरायेंगे - राज्य सरकार को, स्वयं राज्य प्रदूषण बोर्ड के राजनीतिक मुखिया को अथवा उस विभाग के प्रशासक को, जिस पर धन व आदेश जारी करने की जवाबदेही है ? 

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास न पैसा, न जानकारी

गोमती नदी की सफाई हेतु उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण बोर्ड को अब तक किसी सरकार से एक पैसा भी प्राप्त नहीं हुआ है। मेरी तरह, संभवतः यह जानकारी आपको भी चैंेकाये। किंतु सूचना के अधिकार के तहत् मांगी गई एक जानकारी के उत्तर मंे उ. प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यही जानकारी दी है। लखनऊ की ’आरटीआई गर्ल’ के नाम से मशहूर आठ वर्षीया ऐश्वर्या पाराशर द्वारा मांगी जानकारी से हुआ यह खुलासा सचमुच दिलचस्प है। 

यह कोई एक वर्ष का आंकङा नहीं है। बोर्ड से उत्तर प्रदेश राज्य के गठन से लेकर सूचना मांगे जाने की तिथि तक गोमती सफाई पर हुए खर्च का वर्षवार ब्यौरा मांगा गया था। जानकारी मांगने की तिथि 25 अक्तूबर, 2013 थी; जवाब एक वर्ष, दो माह बाद मिला। जवाब देते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्पष्ट लिखा है कि उसे केन्द्र अथवा राज्य सरकार द्वारा गोमती नदी सफाई के मद में कोई पैसा प्राप्त नहीं हुआ है। ऐश्वर्या ने बोर्ड से गोमती में कचरा न डालने के राज्य सरकार के आदेश की सत्यापित प्रति भी मांगी थी। बोर्ड के अनुसार, गोमती नदी सफाई संबंधी निर्देश, नगर विकास विभाग द्वारा जारी किए जाते हैं, लिहाजा वह ऐसी जानकारी नगर विकास विभाग से मांगे। 
जवाब में प्राप्त उक्त जानकारी अपने आप में एक बहस् का विषय है। 

हम बहस कर सकते हैं कि बोर्ड को धन का क्या काम ? उसका काम सफाई करना नहीं, कचरे पर नियंत्रण करने हेतु जरूरी नियम-कानूनों की पालना कराना है; यह जांचना है कि कोई नदी को प्रदूषित न करे। प्रदूषण नियंत्रण जरूरी जन जागरूकरता फैलाना भी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का काम है। किंतु क्या ये काम बिना धन के संभव हैं ? अतः यदि बोर्ड द्वारा दी जानकारी सही है, तो यह प्रदूषण नियंत्रण तंत्र को लेकर सरकारों के रवैये पर एक सवालिया निशान तो है ही। 

कोई साधारण धारा नहीं गोमती

गोमती, कोई 10-20 किलोमीटर लंबी साधारण धारा नहीं है। इसकी लंबाई 900 किलोमीटर है। जिला पीलीभीत के 30 किलोमीटर पूर्व माधोटान्डा कस्बे के मध्य से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम स्थित पन्गैली फुलहेरा ताल इसका मूल स्त्रोत है। इस ताल को गोमत ताल भी कहते हैं। 20 किलोमीटर तक पतली सी धारा के रूप में चलने के बाद गैहाई और फिर 100 किलोमीटर आगे लखीमपुर खीरी जिले की मोहम्मद खीरी तहसील में सुखतो, छोहा, आंध्र छोहा नामक सहायक धारायंे गोमती में मिलती हैं। बनारस से पहले गंगा में मिलने से पूर्व आगे सई, कथिना और सरायना भी गोमती का हिस्सा बन जाती हैं। इस पर बसे 15 नगरों में प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलावा लखीमपुर, सुल्तानपुर और जौनपुर जैसे जिला नगर प्रमुख है। 

अकेले लखनऊ शहर के 26 पुराने नालों का कचरा गोमती में रोकने का प्रयास अभी अधूरा है। आबादी के नये इलाको मंे सात नये नाले और बन गये हैं। लखनऊ शहर के नालों में ठोस कूङे की अत्याधिक मात्रा को विशेष प्रयास, नागरिक समझ व संजीदगी की दरकार है। सीवेज शोधन संयंत्रों के पम्पों को सुचारु रूप से चलाने की चुनौती अभी भी बरकरार है। राजधानी का यह हाल है, तो शेष शहरी प्रदूषण नियंत्रण का क्या हाल होगा ? गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर शहर में सीता कुण्ड का सुंदर घाट देखकर आप खुश हो सकते हैं। किंतु 50 कदम दायें-बायें होने पर गिरते नाले और गंदगी को देखकर आपको बेहद तकलीफ होगी। हमारे ज्यादातर शहरों में प्रदूषण नियंत्रण का यही हाल है। इससे चिंता बढ जाती है।

चिंताजनक शून्य

गोमती के महत्व तथा संकट को देखते हुए ही उत्तर प्रदेश जल बिरादरी ने वर्ष-2009 मंे गोमती को उत्तर प्रदेश की ’राज्य नदी’ का दर्जा दिए जाने की मांग की थी। सोचा था कि यह दर्जा मिलने पर राज्य सरकार को कुछ तो चिंता होगी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गोमती सफाई को लेकर अपने संकल्प को कई बार दोहराया भी है। राजनाथ सिंह ने बतौर लखनऊ सांसद और उमा भारती जी ने बतौर जल संसाधन मंत्री गोमती नदी स्वच्छता हेतु अपना साझा संकल्प सितम्बर, 2014 में ही सार्वजनिक कर दिया था। इतने सारे संकल्प और गोमती को लेकर तमाम गैर सरकारी संगठनों की आवाजों के बावजूद सरकार कुछ तो चेती होगी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कोई धन न भी मिला हो; जन जागृति के लिए ही सही, गोमती सफाई मद में कोई न कोई धनराशि किसी न किसी विभाग को तो मिली ही होगी। यदि नहीं मिली, तो यह अजब बात होगी। यदि मिली ह,ै तो राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इसकी जानकारी का न होना और भी चिंतित करने वाली बात है। 

गोमती निर्मलीकरण हेतु आदेश/निर्देश चाहे जिसने जारी किए हों, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस जिम्मेदारी से नहीं मुकर सकता कि उन्हे लोेगों तक पहुचाना उसका काम है। जन जागरूकरता उसकी जिम्मेदारी है। इस जानकारी को न देना, अपनी नैतिक और अधिकारिक.. जिम्मेदारियांे का निर्वाह न करने जैसा है। 

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्य प्रणाली की समीक्षा जरूरी

सस्कार और बोर्ड के इस रवैये को बीच बहस में लाने की जरूरत है। जरूरत है कि केन्द्र, राज्य, स्थानीय निकायों और तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के बीच समन्वय और संवादहीनता को लेकर उठे ऐसेे सवालों के समाधान तलाशे जायें। राज्य बोर्डों के साथ-साथ, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्य प्रणाली की भी संजीदा समीक्षा और अनुकूल बदलाव की मांग कर रही है। योजना आयोग को नीति आयोग में बदलने वाले प्रधानमंत्री महोदय को चाहिए कि वह इस दिशा में अनुकूल पहल करें; ताकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड महज् ’’ प्रदूषण नियंत्रण मंे है’’  प्रमाणपत्र बांटने वाला संस्थान न होकर, प्रदूषण नियंत्रित करने वाला एक आदर्श और सशक्त कार्यदायी संस्थान बनकर सामने आये।

गोमती को समग्र कार्य योजना की दरकार

नन्ही आर टी आई गर्ल और उसके समर्थन में खङी ’तहरीर’ नामक संस्था ने मांग की है कि टुकङा-टुकङा सफाई से काम चलने वाला नहीं, गोमती निर्मलीकरण हेतु समग्र और समयबद्ध कार्य योजना बनाई जाये। केन्द्र और राज्य दोनो स्तर की सरकारें इस मद में विशेष बजट दें। नदी में कचरा न डालने के आदेश जारी हों। आदेश की पालना हो। महीने में कम से कम एक बार न्यूनतम नौ स्थानों पर गोमती जल की जांच हो। जो भी जांच रिपोर्ट आये, उसे तत्काल सार्वजनिक किया जाये। 

उन्हे नहीं, तो हमें चेत हो

सच है कि सिर्फ प्रावधानांे और ढांचागत् पहल से कोई नदी निर्मल-अविरल नहीं हो सकती। नदी सफाई के नाम पर मंजूर बजट और ढांचागत प्रावधान अब भ्रष्टाचार की नई मंजिल बनते जा रहे हैं। इसलिए अब ऐसी मांगें डराती भी हैं। असल जरूरत है, नदी निर्मलीकरण को लेकर संजीदगी और साफ नीयत की। मां गोमती के लिए उसकी एक नन्ही बिटिया की अपील से सरकार चेते, न चेते; यदि गोमती की संतानें चेत गईं, तो ही गोमती चेत जायेगी।

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