Sunday, 5 August 2012

भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए संसद में अच्छे लोग भेजना जरूरी है

हमारे देश का विकास रुका है वो बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण रुका है। देश का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां भ्रष्टाचार नहीं है। सरकार  भ्रष्टाचार रोकने के लिए कोई काम नहीं कर रही है।  भ्रष्टाचार पर रोकथाम लगे इसके लिए जनता ने बार-बार आंदोलन किया। 16 अगस्त में देश के आजादी के बाद पहली बार करोड़ों लोग रास्ते पर उतर आए और  भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जनलोकपाल कानून की मांग कर रहे थे। लेकिन सत्ता और पैसे के नशे में सराकर चलाने वाले लोगों को उन करोड़ो लोगों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। सरकार बेहरी बनी थी। क्या  भ्रष्टाचार को मिटाना सरकार का कर्तव्य नहीं है?
जनता ने अपने सेवक के नाते उनको लोकसभा में भेजा है। इसी लिए भेजा है कि हम 26 जनवरी 1950 में इस देश के मालिक बने है। सरकारी तिजोरी में जो टैक्स का पैसा जमा होता है। वो हमारा है। उसका समाज और देश के विकास का सही नियोजन करो और हमारा पैसा सही काम के लिए खर्च करो। जब जनता देश की मालिक जनप्रतिनिधि जनता के सेवक है। तो जनता का पैसा कहां खर्च हो रहा है। उससे किस कार्य का निर्माण हो रहा है। यह बात जनता को बताना जरूरी है। लेकिन प्रजातंत्र होते हुए 60 साल से इन लोगों ने जनता को कोई हिसाब नहीं दिया। इस कारण जनता की तिजोरी का पैसा चोरी होना शुरू हो गया। मालिक के नाते जनता का कर्तव्य था कि मेरा पैसा कहां खर्च हो रहा है। मुझे हिसाब तो दे दो। मालिक ने अपने सेवक को तो भेज दिया। पर मालिक ही सो गया। इस कारण तिजोरी की चोरी बढ़ गई।
हमारा देश कानून के आधार पर चला हुआ देश है। न्याय व्यवस्था देश की सर्वोच्च व्यवस्था है। देश और समाज की भलाई के लिए अच्छे-अच्छे कानून बनाना यह भी उनका कर्तव्य था। लेकिन उन्होंने  भ्रष्टाचार रोकने वाले कोई भी कानून नहीं बनाए। इस कारण देश में  भ्रष्टाचार बढ़ता गया।  भ्रष्टाचार रोकने वाले सख्त कानून बनवाने के लिए जनता रूपी मालिक ने इन सेवकों को भेजा था और करोड़ो लोग रास्ते पर आकर कह रहे हैं कि  भ्रष्टाचार रोकने के लिए जनलोकपाल कानून जैसे सख्त कानून बनाओ और सेवक ही मालिक से गद्दार होकर कह रहे है कि कानून नहीं बनवाएंगे? यह तो संविधान का अवमान है। डा. बाबा साहेब अम्बेडकर जी के बनाए संविधन में स्पष्ट कहा है कि हम भारत के लोग संविधान के मुताबिक जनता और देश की भलाई के लिए संविधान का पालन करेंगे। उसी संविधान के आधार पर जनता लोकसभा के सभी सांसदों को  भ्रष्टाचार को मिटाने की अपील कर रही है। और सांसद कह रहे हैं कि नहीं करेंगे?
संविधान कह रहा है देश की सामाजिक, आर्थिक विषमता को दूर करना है। जाति -पाति, धर्म-वंश इनका भेद न रहते हुए धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र का निर्माण हो। क्या सांसदों ने उस बात को पूरा किया है? उलटा चुनाव के दौरान जाति-पाति का ज़हर फैलाकर चुनाव में जीतने की कोशिश कई सांसदों से होती है। संसद लोकशाही का पवित्र मंदिर है और पवित्र मंदिर में आपराधिक लोग गए तो क्या यह मंदिर पवित्र रहेगा?  भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण करना है तो संसद में चरित्रशील, शुद्ध आचार, शुद्ध विचार, निष्कलंक जीवन, त्याग, राष्ट्र प्रेम, सेवा भाव, सामाजिक राष्ट्रीय दृष्टिकोण हो ऐसे लोग गए बिना  भ्रष्टाचार मुक्ति भारत का निर्माण नहीं होगा। कई लोग कहते है ऐसे लोग कहां हैं? देश में ऐसे लोग हैं उनको खोजना होगा। 120 करोड़ जनता में 1000 चरित्रशील लोग नहीं मिलेंगे? ऐसा नहीं हो सकता। कारण, इस देश की परमपरा चरित्र और त्याग पर आधारित परमपरा है। ऐसे लोग खोजने से जरूर मिलेंगे। मैंने 40 साल पहले यह ज़ाहिर किया था कि मैं पक्ष और पार्टी नहीं बनाऊंगा। किसी भी राजनिति में नहीं जाऊंगा। यह उम्र के 40 साल पहले निर्णय लिया। न पक्ष निकालूंगा, न चुनाव लडूंगा, न पार्टी निकालूंगा केवल विकल्प देने का प्रयास करूंगा। साथ-साथ यह भी निर्णय लिया था कि मैं भगवत गीता का कर्मयोग का पालन करूंगा। मैं जो भी कर्म करूंगा। वह किसी फल की अपेक्षा न करते हुए निष्काम भाव से करूंगा। “यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थ्नामधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।” गीता के इस संदेश का पालन करते हुए कार्य करता रहूंगा। कभी चुनाव नहीं लडूंगा यह भी निर्णय लिया। लेकिन समाज को देश की भलाई के लिए निष्काम भाव से कर्म करते हुए समाज को विकल्प देते रहूंगा।
मैंने गांव को आदर्श बनाने के लिए कभी ग्राम पंचायत का चुनाव नहीं लड़ा। समाज के लिए विकल्प दिया चुनाव लड़ना। मेरे लिए यह असंभव नहीं था लेकिन मैंने व्रत लिया। इस देश की जनता  भ्रष्टाचार से त्रस्त हो गई है। मैं 20 साल से  भ्रष्टाचार कम करने का प्रयास कर रहा हूं। लेकिन सरकार चलाने वाले लोग अपने स्वार्थ के लिए बेहरे बनने के कारण यह आवाज़ नहीं सुन रहे है।
कई सालों से लोग मुझे कह रहे थे कि  भ्रष्टाचार को रोकना है तो सरकार की तरफ से अपेक्षा रखकर नहीं होगा। जब संसद में सेवाभावी लोग नहीं जाएंगे। तब तक  भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकेगा।
सरकार बार-बार धोखाधड़ी करने के बावजूद भी जनलोकपाल कानून के बारे में यह विचार था कि सरकार को कभी न कभी भगवान सद्बुद्धि देगा और देश को जनलोकपाल कानून मिलेगा और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को रोक लगेगी। और गरीब लोगों को न्याय मिलेगा। लेकिन सत्ता और पैसे के नशे में सरकार चलने वाले इतने बेहोश हो गए हैं कि समाज और देश को हम कहां लेकर जा रहे हैं इसका उनको होश ही नहीं रहा।
जनता की मांग थी, रालेगन सिद्धि में आकर कई लोग कह रहे थे, जंतर मंतर पर कई लोग हर दिन नारे लगा रहे थे कि विकल्प दो, तब मुझे लगा कि विकल्प देना जरूरी है। देश के जाने-माने 23 लोगों ने भी पत्र लिखकर अपील की कि विकल्प देना जरूरी है। और मुझे लगा की लोगों की मांग सही है। देश की जनता को विकल्प देना पड़ेगा। कारण, सरकार  भ्रष्टाचार मुक्ति भारत की सोच नहीं कर रही है। जनलोकपाल में पिछले डेढ़ साल से धोखाधड़ी कर रही है और हमें बार-बार अनशन करने पर मजबूर कर रही है सरकार अनशन करते-करते हम मर जाए यह सोच तो नहीं है? कारण, अनशन करते-करते कई लोग मर गए यह उदहारण है। लेकिन कुछ प्रश्न खड़े हुए हैं। आज एक चुनाव में करोड़ो रुपए खर्च होते हैं। देश को विकल्प देना है तो चुनाव के लिए पैसा कहां से आएगा? विकल्प तब दे सकेंगे। दिल्ली की संसद और राज्य की विधानसभा से भी बड़ी होती हैं ग्राम संसद। देश में 6 लाख ग्रामसभाएं हैं। यह सभी ग्रामसभाएं अपने-अपने ग्रामसभा से सुझाव पारित करती है कि हमें जो विकल्प मिल रहा है। उसके पीछे हम खड़े होंगे। और विकल्प देने वाले पार्टी के उम्मीदवारों को ही वोट देंगे। हमारी ग्रामसभा यह प्रतिज्ञा करती है कि गांव की कोई मतदाता रिश्वत लिए बिना मतदान करेंगे। ऐसे 6 लाख ग्रामसभा तय करती है तो सही विकल्प जरूर दे सकेंगे।
स्कूल-कॉलेज के नौजवान अपने देश के भविष्य के लिए गांव-गांव जाकर लोगों को जगाएंगे और ग्रामसभा का सुझाव पारित कराएंगे। ग्रामसभा ने यह भी सुझाव देना है कि हमारा गांव 90 प्रतिशत मतदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। गांव में जैसे ग्रामसभा हैं वैसे ही शहरों में वार्ड सभा हैं, मोहल्ला सभा हैं उनका भी सुझाव पारित होने से जरूर विकल्प दे सकेंगे।
विकल्प देना इतना आसान काम नहीं है लेकिन असंभव भी नहीं है। देश के सभी लोगों दिल में आया तो आज असंभव लगता है पर संभव हो जाएगा। फिर से मैं बताना चाहता हूं कि मैं न पक्ष निकालूंगा न चुनाव लडूंगा। लेकिन  भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण के लिए देश भर घुमकर जनता को जगाऊंगा और संसद में अच्छे लोग जाए इसका प्रयास करूंगा।  भ्रष्टाचार से जनता को जीना मुश्किल हो जाने के कारण जनता विकल्प का स्वागत करेगी ऐसा मुझे लगता है।

भवदीय,
कि. बा. उपनाम अण्णा हज़ारे
This entry was posted in From my desk (Anna). Bookmark the permalink.

No comments:

Post a Comment