भू-अर्जन कानून में ‘अध्यादेश’ से संशोधन किसान-मजदूर विरोधी !
राष्ट्रपति महोदय हस्ताक्षर नही करें !
संघर्ष तेज़ होगा !!
30 Dec 2014, नयी दिल्ली: संसद सत्र पूरा होने के तत्काल बाद तथा महाराष्ट्र से झारखण्ड के विधानसभा चुनावों के पश्चात नरेन्द्र मोदी जीकी भाजपा/एनडीए शासन ने ‘अध्यादेश’ लाकर जो कानून बदलने की जल्दबाजी की है, वह संवैधानिक दायरे में नहीं है | जो कानून संसदीय समिति(ग्रामीण विकास ) की ओर से सर्वदलीय सहमती से बने मसौदे के आधार पर बने तथा संसद के दोनों सदनों से पारित ‘भू-अर्जन में पारदर्शिता एवं सहीपुनर्वास’ कानून, २०१३ में इस प्रकार से बुनियादी संशोधन, जनतंत्र के खिलाफ तथा अनैतिक है |
कानून में जो संशोधन होने जा रहा है, वह ‘किसानों के पक्ष में है’, ‘धारा 105 के तहत मजबूरी से करना पड़ा है’ तथा ‘इससे विस्थापितों के हित कोकोई बाधा नहीं पहुँचेगी’ ये सरासर झूठ दावे करते हुए, वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अध्यादेश को मंत्री परिषद् की मंज़ूरी घोषित की, बजाये ग्रामीणविकास मंत्री के | पहले से सुषमा स्वराज और केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बिरेन्द्र सिंह तो अपने वक्तव्य में संशोधन की संभावना बताते रहे,लेकिन अब ‘अध्यादेश’ राष्ट्रपति महोदय को भेजने की तैयारी कर रहे हैं | यह धोका-धड़ी मोदी सरकार के अन्य मुद्दों के जैसे ही है |
धारा 105 के तहत एक साल में यानी दिसंबर 2015 तक कानून में संशोधन संभावित है लेकिन जो प्रावधान मूलत: कानून में है, उन्हें हटाने के लिएइस धारा किसी भी तरह से मजबूर नहीं करती है | तीन कानून जो इसके दायरे में रहे हैं, उनके अलावा 13 कानून (मेट्रो, रेल, हाईवे इत्यादि ) शामिलकरने के लिए भी जल्दबाजी का यह कारण गलत है नयी सरकार ने जिन धाराओं में बदलाव लाना चाहा है, वह सभी किसानो-मजदूरों-विस्थापितों केपक्ष की धाराएं है | ब्रिटिशों से चलता आया 1894 का कानून जनवादी ना होने से , उसे खारिज करके इस नए कानून को सभी दल शामिल हुए, इसमेंसंशोधन के मुद्दों को ‘अद्योघिकरण’ और ‘खेतिहरों के हितों में तालमेल बननें की निर्णय बताना भी है |
निजी तथा शासकीय + निजी (PPP) परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन की पूर्व शर्त, 80% और 70% प्रभावित किसानों की मंज़ूरी है | इसे 5 वर्ग कीपरियोजनाओं के लिए अब लागू नहीं करेगी मोदी सरकार !
पर्यावरणीय असर का अध्ययन और जन-सुनवाई के साथ 2013 के कानून से सामाजिक असर का अध्ययन’ (SIA) भी करना होगा | इसे 5 वर्गों केविशेष प्रोजेक्ट के लिए गैर लागू काफ्रने का निर्णय ‘अध्यादेश’ में होगा |
इन 5 वर्गों की परियोजनाओं में पर्यटन, मैन्युफैक्चरिंग, खदाने, आदि के साथ इंडस्ट्रियल कॉरिडोर भी शामिल है | गरीबों के लिए गृहनिर्माण जैसीयोजनाओं को सहूलियत यानी बिल्डरों के लिए ही मंज़ूरी की शर्त से छुट्टी | इन तमाम परियोजनाओं से कहीं हज़ारों तो कहीं लाखों का विस्थापन औरभूमि अधिग्रहण है | इन्हें कानून के पप्रमुख प्रावधानों से छुटकारा मतलब कानून को ही नाकाम करना |
आज तक ‘अध्यादेश’ का मसौदा ‘’पारदर्शिता’’ का दावा करने वाली सरकार ने ज़ाहिर नहीं किया है लेकिन चर्चा से लगता है कि
i) बहुफसली खेती की भूमी को बंजर ज़मीन उपलब्ध न होने की स्थिति में ही केवल, आखिरी विकल्प के रूप में मानना,
ii) अर्जेंसी की धारा केवल रक्षा मंत्रालय की तथा प्राकृतिक आपदा संबंदी योजनाओं के लिए ही लागू करना, जैसी धाराओं में भी संशोधन लाया जाने कीसंभावना है | खेतिहरों के पक्ष में या उद्योगपति और किसान दोनों के हित में बताते वक़्त केंद्र शासन ने केवल एक ही नया प्रावधान का ज़िक्र किया हैजो की 13 कानूनों को भी 2013 के कानूनों के दायरे में लाना | लेकिन उन कानूनों के तहत आनेवाले कार्य अगर ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ या 5 में से किसी भीवर्ग में शामिल होने से, उन्हें सहूलियत दी जाए तो केवल पुनर्वास के नए प्रावधान उन्हें लागू होंगे | यह बहुत बड़ी बात नहीं है, क्योंकि पुनर्वास केप्रावधान भी कमज़ोर है ही |
जहाँ तक पुनर्वास का सवाल है, अन्य कई परियोजनाओं के लिए नए अध्यादेश के अनुसार पुनर्वास के नाम पर नगद मुआवजा बढाने की बात हैलेकिन राज्य शासन के निर्णय पर निर्भर रखा है; ; केवल सिंचाई परियोजनाओं में ‘संभव हो तो ‘दलित-आदिवासी परिवारों को ढाई एकड़ ज़मीन काप्रावधान है, और परिवार के एक व्यक्ति को न्यूनतम आय की नौकरी या 5 लाख या 20 सालों तक मासिक 2000 रु./- + भत्ते देना भी पर्याप्तबिलकुल नहीं है | इससे प्रभावित परिवार को वैकल्पिक आजीविका की गारंटी न होने से, इस कानून का लाभ विशेष नहीं मिलेगा, यह हकीकत है |ग्राम सभा, पंचायती राज के होते हुए भी ऊपर से थोपे गए विकास और असमर्थनीय भू- अधिग्रहण, विस्थापन आदि के कारण संघर्ष बढे है, जो फिरबढ़ेंगे, यह चित्र स्पष्ट है | उद्योगपति, पूँजी निवेशकों को कोई अवरोध नही चाहिए , इसलिए किसा मजदूर, शहरी गरीब, मछुआरे आदि तमामप्रकृति-निर्भर तबको की सम्पदा छीनने को विकास के नाम से बहुत बढ़ोतरी देने वाले इस अध्यादेश पर हंस्ताक्षर करने से, राष्ट्रपति और राज्यपालभी अपने अनुसूची पांच तथा संविधान की अन्य धाराओं के तहत प्राप्त कर्तव्यों से हट जायेंगे, यह निश्चित है |
मोदी सरकार इसे तत्काल वापस लेकर जनसंगठनों से बात करे और संसद के दोनों सदनों में इस पर बहस करें | भाजपा और मोदी जी के अलावा हरराजनितिक दल इस पर अपनी भूमिका ज़ाहिर करे यह यह भी जन आन्दोलनों की अपेक्षा है |
Medha Patkar, Yogini Khanolkar, Meera - Narmada Bachao Andolan and the National Alliance of People’s Movements (NAPM); Prafulla Samantara - Lok Shakti Abhiyan & Lingraj Azad – Niyamgiri Suraksha Samiti, NAPM, Odisha; Dr. Sunilam, Aradhna Bhargava - Kisan Sangharsh Samiti & Meera – Narmada Bachao Andolan, NAPM, MP; Suniti SR, Suhas Kolhekar, Prasad Bagwe - NAPM, Maharashtra; Gabriel Dietrich, Geetha Ramakrishnan – Unorganised Sector Workers Federation, NAPM, TN; C R Neelkandan – NAPM Kerala; P Chennaiah & Ramakrishnan Raju – NAPM Andhra Pradesh, Arundhati Dhuru, Richa Singh - NAPM, UP; Sister Celia - Domestic Workers Union & Rukmini V P, Garment Labour Union, NAPM, Karnataka; Vimal Bhai - Matu Jan sangathan & Jabar Singh, NAPM, Uttarakhand; Anand Mazgaonkar, Krishnakant - Paryavaran Suraksh Samiti, NAPM Gujarat; Kamayani Swami, Ashish Ranjan – Jan Jagran Shakti Sangathan & Mahendra Yadav – Kosi Navnirman Manch, NAPM Bihar; Faisal Khan, Khudai Khidmatgar, NAPM Haryana; Kailash Meena, NAPM Rajasthan; Amitava Mitra & Sujato Bhadra, NAPM West Bengal; B S Rawat – Jan Sangharsh Vahini & Rajendra Ravi, Madhuresh Kumar and Kanika Sharma– NAPM, Delhi